Class 11 Chapter 1. समय की शुरुआत से संचार, भाषा और कला : NCERT Book Solutions
Class 11 chapter Chapter 1. समय की शुरुआत से important extra short questions with solution for board exams and term 1 and term 2 exams.
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Chapter 1. समय की शुरुआत से : संचार, भाषा और कला History class 11th:Hindi Medium NCERT Book Solutions
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Class 11 Chapter 1. समय की शुरुआत से संचार, भाषा और कला : NCERT Book Solutions
NCERT Books Subjects for class 11th Hindi Medium
Chapter 1. समय की शुरुआत से
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संचार, भाषा और कला
संचार, भाषा और कला :
भाषा के विकास पर कई प्रकार के मत हैंः
(i) होमिनिड भाषा में अंगविक्षेप (हाव-भाव) या हाथों का संचालन (हिलाना) शामिल था |
(ii) उच्चरित भाषा से पहले गाने या गुनगुनाने जैसे मौखिक या अ-शाब्दिक संचार का प्रयोग होता था | (iii) मनुष्य की वाणी का प्रारंभ संभवतः आह्वाहन या बुलावों की क्रिया से हुआ था जैसा कि नर-वानरों में देखा जाता है। प्रारंभिक अवस्था में मानव बोलने में बहुत कम ध्वनियों का प्रयोग करता होगा। धीरे-धीरे ये ध्वनियाँ ही आगे चलकर भाषा के रूप में विकसित हो गई ।
बोली जाने वाली भाषा की उत्पति : ऐसा माना जाता है होमो हैबिलिस के मस्तिष्क में कुछ ऐसी विशेषताएँ थी जिनके कारण उनके लिए बोलना संभव हुआ होगा | भाषा का विकास सबसे पहले 20 लाख वर्ष पूर्व हुआ | स्वर-तंत्र का विकास लगभग दो लाख वर्ष पहले हुआ | इसका संबंध खास तौर से आधुनिक मानव से है |
भाषा के विकास से मानव के अन्य क्रिया-कलापों में मदद :
शिकार करने और आश्रय या घर बनाने के कार्य में भाषा के प्रयोग से मानव को बहुत सुविधा प्राप्त हुई होगी। भाषा-विचार सम्प्रेषण का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है। पहले भाषा का रूप हाव-भाव थे। होमोनिड भाषा में हाव-भाव या हाथों का संचालन सम्मिलित था। उच्चारित भाषा से पूर्व मौखिक या अशाब्दिक संचार का प्रयोग किया जाता था। मानव की वाणी का प्रारम्भ सम्भवतया प्राइमेट्स में पाए जाने वाले बुलावों की क्रिया से हुआ। प्रारम्भिक मानव एक-दूसरे को भाषा के माध्यम से शिकार का स्थान और उसका प्रकार बताता होगा। यही नहीं, शिकार किस प्रकार किया जाए, इसकी भी जानकारी प्राप्त करता होगा। कुछ पुरातत्त्वशास्त्रियों का विचार है कि भाषा, कला के साथ-साथ 40000-35000 वर्ष पूर्व विकसित हुई उच्चारित भाषा का विकास कला के साथ निकटतापूर्वक जुड़ा है। इसी कला के माध्यम से मानव को आश्रय या घर की सुविधा के विषय में ज्ञान प्राप्त हुआ होगा। घर बनाने की तकनीक, इसमें प्रयुक्त होने वाली सामग्री की जानकारी भी एक-दूसरे से भाषा के माध्यम से ही प्राप्त हुई होगी। विचार सम्प्रेषण केअन्य तरीकों के रूप में नृत्य, हाव-भाव का प्रदर्शन, चित्रकारी करना, रेखाएँ खींचना, लक्ष्य दिखाना आदि का प्रयोग किया जाता रहा होगा।
मानव विज्ञान (Anthropology) : मानव विज्ञान एक ऐसा विषय है जिसमें मानव संस्कृति और मानव जीव विज्ञान के उद्द्विकसीय पहलुओं का अध्ययन का अध्ययन किया जाता है |
हदज़ा जनसमूह : हदज़ा शिकारियों तथा संग्राहकों का एक छोटा समूह है जो ‘लेक इयासी’ एक खारे पानी की विभ्रंश घाटी में बनी झील के आसपास रहते हैं।
प्राकृतिक संसाधन : पूर्वी हादजा इलाका सूखा और चट्टानी है, जहाँ घास (सवाना), काँटेदार झाडि़याँ और एकासियों के पेड़ों की बहुतायत है, लेकिन यहाँ जंगली खाद्य-वस्तुएँ भरपूर मात्रा में मिलती हैं। बीसवीं शताब्दी के शुरू में यहाँ भाँति-भाँति के जानवरों की बेशुमार संख्या थी। यहाँ के बड़े जानवरों में हाथी, गैंडे, भैंसे, जिराफ, जेब्रा, वाटरबक, हिरण, चिंकारा, खागदार जंगली सुअर, बबून बंदर, शेर, तेंदुए और लकड़बग्घे जितने आम हैं उतने ही आम छोटे जानवरों में साही मछली (porcupine), खरगोश, गीदड़, कछुए और अनेक प्रकार के जानवर हैं।
शिकार : हादजा लोग हाथी को छोड़कर बाकी सभी किस्म के जानवरों का शिकार करते हैं और उनका मांस खाते हैं। यहाँ शिकार के भविष्य को कोई खतरा पैदा किए बिना, नियमित रूप से जितना मांस खाया जाता है, उतना दुनिया के किसी भी ऐसे भाग में नहीं खाया जा सकता, जहाँ ऐसे शिकारी-संग्राहक रहते हैं।
भोजन : हदज़ा लोगों की भोजन की पूर्ति का 80% तक भाग मुख्य रूप से वनस्पतिजन्य होता है और शेष 20 प्रतिशत भाग मांस और शहद से पूरा किया जाता है |
(i) यहाँ नियमित रूप से मांस खाया जाता है |
(ii) यहाँ पाई जाने वाली सात किस्म की जंगली मधुमक्खियों के शहद और सूंडि़यों को चाव से खाया जाता है |
(iii) हादज़ा लोग अपने भोजन के लिए मुख्य रूप से जंगली साग-सब्जियों, कंद-मूल, बेर आदि पर ही निर्भर रहते हैं।
(iv) सूखे समय में भी यहाँ भोजन की कोई कमी नहीं रहती है |
आवास : देश के कुछ हिस्से में घास के खुले मैदान हैं, लेकिन हादजा लोग वहाँ कभी अपना शिविर नहीं बनाते। उनके शिविर पेड़ों अथवा चट्टानों के बीच बल्कि तरजीही तौर पर वहाँ लगाए जाते हैं जहाँ ये दोनों सुविधएँ उपलब्ध् हों। उनके शिविर आमतौर पर जलस्रोत से एक किलोमीटर की दूरी में ही स्थापित किए जाते हैं।
संजाति वृत्त (Ethnography) : इसमें समकालीन नृजातीय समूहों का विश्लेषणात्मक अध्ययन
होता है। इसमें उनके रहन-सहन, खान-पान आजीविका के साधन, प्रौद्योगिकी आदि की जाँच
की जाती है। स्त्राी-पुरुष की भूमिका, कर्मकांड, रीति-रिवाज, राजनीतिक संस्थाओं और सामाजिक
रूढि़यों का अध्ययन किया जाता है।
शिकारी संग्राहक समाज - यह समाज शिकार करने के साथ-साथ आर्थिक क्रियाकलापों में लगे रहते थे | जैसे - जंगलों में पाई जाने वाली छोटी-छोटी चीजों का विनमय और व्यापार करना इत्यादि |
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इस पाठ के अन्य दुसरे विषय भी देखे :
2. होमो प्रजाति के मनुष्यों का वर्गीकरण
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