atp logo  ATP Education
Hi Guest

CBSE NOTES for class 12 th

 

Chapter 5. यात्रियों के नजरिए : History Part-2 class 12 th:Hindi Medium NCERT Book Solutions

NCERT Books Subjects for class 12th Hindi Medium

Page 1 of 4

Chapter 5. यात्रियों के नजरिए

 

 विभिन्न लोगों द्वारा यात्राओं का कारण/उदेश्य : 

(i) महिलाओं और पुरुषों ने कार्य की तलाश में,

(ii) प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए

(iii) व्यापारियों, सैनिकों, पुरोहितों और तीर्थयात्रियों के रूप में 

(iv) साहस की भावना से प्रेरित होकर यात्राएँ की हैं।

10 वीं से 17 वीं शताब्दी के बीच भारतीय उपमहाद्वीप में आए यात्री : 

(i) अल-बिरूनी : जो ग्यारहवी शताब्दी में उज्बेकिस्तान से आया था |

(ii) इब्न बतूता : यह यात्री चौदहवी शताब्दी में मोरक्को से  भारत आया था |

(iii) फ्रांस्वा बर्नियर : सत्रहवी शताब्दी में यह यात्री फ़्रांस से आया था |

(iv) अब्दुर्र रज्जाक : यह यात्री हेरात से आया था |  

अल-बिरूनी की जीवन-यात्रा : अल-बिरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान में स्थित ख़्वारिश्म में सन् 973 में हुआ था। ख़्वारिश्म शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था और अल-बिरूनी ने उस समय उपलब्ध् सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी। वह कई भाषाओं का ज्ञाता था जिनमें सीरियाई, फारसी, हिब्रू तथा संस्कृत शामिल हैं। हालाँकि वह यूनानी भाषा का जानकार नहीं था पर फिर भी वह प्लेटो तथा अन्य यूनानी दार्शनिकों के कार्यों से पूरी तरह परिचित था जिन्हें उसने अरबी अनुवादों के माध्यम से पढ़ा था। सन् 1017 ई. में ख़्वारिश्म पर आक्रमण के पश्चात सुल्तान महमूद यहाँ के कई विद्वानों तथा कवियों को अपने साथ अपनी राजधनी गजनी ले गया। अल-बिरूनी भी उनमें से एक था। वह बंधक के रूप में गजनी आया था पर धीरे-धीरे उसे यह शहर पसंद आने लगा और सत्तर वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु तक उसने अपना बाकी जीवन यहीं बिताया।

अल-बिरूनी की यात्रा : अल-बिरूनी उज्बेकिस्त्ना से बंधक के रूप में गजनवी साम्राज्य में आया था | उतर भारत का पंजाब प्रान्त भी उस सम्राज्य का हिस्सा बन चूका था | हालाँकि उसका यात्रा-कार्यक्रम स्पष्ट नहीं है फिर भी प्रतीत होता है कि उसने पंजाब और उत्तर भारत के कई हिस्सों की यात्रा की थी। अल-बिरूनी ने ब्राह्मण पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष बिताए और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया। 

    उसके लिखने के समय यात्रा वृत्तांत अरबी साहित्य का एक मान्य हिस्सा बन चुके थे। ये वृत्तांत पश्चिम में सहारा रेगिस्तान से लेकर उत्तर में वोल्गा नदी तक फैले क्षेत्रों से संबंधित थे।

किताब-उल-हिन्द : यह पुस्तक अल-बिरूनी के द्वारा अरबी भाषा में लिखी गई थी | इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है | यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल-विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक-जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधर पर अस्सी अध्यायों में विभाजित है। 

अल-बिरूनी के लेखन कार्य की विशेषताएँ : 

(i) अपने लेखन कार्य में उसने अरबी भाषा का प्रयोग किया | 

(ii) इन ग्रंथों की लेखन-सामग्री शैली के विषय में उसका दृष्टिकोण आलोचनात्मक था | 

(iii) उसके ग्रंथों में दंतकथाओं से लेकर खगोल-विज्ञान और चिकित्सा संबंधी कृतियाँ भी शामिल थीं।

(iv) प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया जिसमें आरंभ में एक प्रश्न होता था, फिर संस्कृतवादी परंपराओं पर आधरित वर्णन और अंत में अन्य संस्कृतियों के साथ एक तुलना।

इब्न बतूता की जीवन-यात्रा : इब्न बतूता द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृत्तांत जिसे रिह् ला कहा जाता है, चौदहवीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा रोचक जानकारियाँ देता है। मोरक्को के इस यात्राी का जन्म तैंजियर के सबसे सम्मानित तथा शिक्षित परिवारों में से एक, जो इस्लामी कानून अथवा शरिया पर अपनी विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध था, में हुआ था।
अपने परिवार की परंपरा के अनुसार इब्न बतूता ने कम उम्र में ही साहित्यिक तथा शास्त्ररूढ़ शिक्षा हासिल की।

यात्राओं से अर्जित अनुभव को इब्न बतूता ज्यादा महत्त्व देता था : 

अपनी श्रेणी के अन्य सदस्यों के विपरीत, इब्न बतूता पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से अर्जित अनुभव को ज्ञान का अधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत मानता था। उसे यात्राएँ करने का बहुत शौक था और वह नए-नए देशों और लोगों के विषय में जानने के लिए दूर-दूर के क्षेत्रों तक गया।

इब्न बतूता की यात्राएँ : 

(i) 1332-33 में भारत के लिए प्रस्थान करने से पहले वह मक्का की तीर्थ यात्राएँ और सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के कई तटीय व्यापारिक बंदरगाहों की यात्राएँ कर चुका था। 

(ii) मध्य एशिया के रास्ते होकर इब्न बतूता सन् 1333 में स्थलमार्ग से सिंध पहुँचा और दिल्ली तक की यात्रा की |

(iii) 1342 ई. में मंगोल शासक के पास दिल्ली सुल्तान के दूत के रूप में चीन जाने का आदेश दिया गयाऔर वह  चीन भी गया | 

(iv) चीन जाने के अपने कार्य को दोबारा शुरू करने से पहले वह बंगाल तथा असम भी गया। वह जहाज से सुमात्रा भी गया |

इब्न बतूता की यात्रा वृतांत की विशेषताएँ : 

(i) चीन के विषय में उसके वृत्तांत की तुलना मार्को पोलो, जिसने तेरहवीं शताब्दी के अंत में वेनिस से चलकर चीन ;और भारत की भी की यात्रा की थी, के वृत्तांत से की जाती है।

(ii) इब्न बतूता ने नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं, मान्यताओं आदि के विषय में अपने अभिमत को सावधनी तथा कुशलतापूर्वक दर्ज किया।

आज की तुलना में चौदहवीं शताब्दी में यात्राएँ करना कठिन और जोखिम भरा था : 

(i) इब्न बतूता बताता है कि उसे मुल्तान से दिल्ली की यात्रा में चालीस और सिंध से दिल्ली की यात्रा में लगभग पचास दिन का समय लगा था। दौलताबाद से दिल्ली की दूरी चालीस, जबकि ग्वालियर से दिल्ली की दूरी दस दिन में तय की जा सकती थी।

(ii) लंबी यात्राओं में लुटेरे ही एकमात्र खतरा नहीं थेः यात्राी गृहातुर हो सकता था और बीमार हो सकता था।

(iii) उसने बताया कि यात्रा करना अधिक असुरक्षित भी था | इब्न बतूता ने कई बार डाकुओं के समूहों द्वारा किए गए आक्रमण झेले थे। यहाँ तक कि वह अपने साथियों के साथ कारवाँ में चलना पसंद करता था, पर इससे भी राजमार्गों के लुटेरों को रोका नहीं जा सका।

(iv) मुल्तान से दिल्ली की यात्रा के दौरान उसके कारवाँ पर आक्रमण हुआ, और उसके कई साथी यात्रियों को अपनी जान से हाथ धेना पड़ाः जो जीवित बचे, जिनमें इब्न बतूता भी शामिल था, बुरी तरह से घायल हो गए थे।

फारस के चार सामाजिक वर्ग : 

अल-बिरूनी में अपनी पुस्तक में फारस के चार सामाजिक वर्गों का वर्णन किया  है -

(i) घुड़सवार और शासक वर्ग 

(ii) भिक्षु एवं अनुष्ठानिक पुरोहित 

(iii) चिकित्सक, खगोल-शास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक 

(iv) कृषक तथा शिल्पकार 

फ़्रांसिसी जौहरी ज्यौं-बैप्टिस्ट तैवर्नियर की भारत यात्रा :  इसने कम से कम छह बार भारत की यात्रा की। वह विशेष रूप से भारत की व्यापारिक स्थितियों से बहुत प्रभावित था और उसने भारत की तुलना ईरान और
ऑटोमन साम्राज्य से की।

भारत में बसने वाले यात्री : इतालवी चिकित्सक मनूकी, कभी भी यूरोप वापस नहीं गए और भारत में ही बस गए।

अल-बिरुनी द्वारा संस्कृत के विषय में विचार : 

अल-बिरूनी संस्कृत को विशाल पहुँच वाली भाषा बताता है और लिखता है - 
यदि आप इस कठिनाई अर्थात संस्कृत भाषा सीखने से है से पार पाना चाहते हैं तो यह आसान नहीं होगा
क्योंकि अरबी भाषा की तरह ही, शब्दों तथा विभक्तियों, दोनों में ही इस भाषा की पहुँच बहुत विस्तृत है। इसमें एक ही वस्तु के लिए कई शब्द, मूल तथा व्युत्पन्न दोनों, प्रयुक्त होते हैं और एक ही शब्द का प्रयोग कई वस्तुओं के लिए होता है, जिन्हें भली प्रकार समझने के लिए विभिन्न विशेषक संकेतपदों के माध्यम से एक दूसरे से अलग
किया जाना आवश्यक है। 

भारत को समझने में बाधाएँ (अल-बिरूनी) : 

उसने कई "अवरोधों" अर्थात बाधाओं की चर्चा की है जो उसके अनुसार समझ में बाधक थे।

(i) भाषा : उसके अनुसार संस्कृत, अरबी और फारसी से इतनी भिन्न थी कि विचारों और सिद्धांतो को एक भाषा से दूसरी में अनुवादित करना आसान नहीं था।

(ii) धार्मिक अवस्था और प्रथा में भिन्नता : इन समस्याओं की जानकारी होने पर भी, अल-बिरूनी लगभग पूरी तरह से भारतीय विद्वानों द्वारा रचित कृतियों पर आश्रित रहा। उसने भारतीय समाज को समझने के लिए अकसर वेदों, पुराणों, भगवद्गीता, पतंजलि की कृतियों तथा मनुस्मृति आदि से अंश उदृत किए।

(iii) अभिमान  : वह तीसरा अवरोध अभिमान को बताता है | 

अल-बिरूनी के अनुसार पवित्रता : 

हर वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है।

वह अपने तर्कों की पुष्टि के लिए उदाहरण भी देता है - 

(i) सूर्य हवा को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गंदा होने से बचाता है।

(ii) अल-बिरूनी जोर देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन असंभव होता। उसके अनुसार जाति व्यवस्था में सन्निहित अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी।

ATP Education
www.atpeducation.com ATP Education www.atpeducation.com

ATP Education

 

 

Advertisement

NCERT Solutions

Select Class for NCERT Books Solutions

 

 

 

Notes And NCERT Solutions

Our NCERT Solution and CBSE Notes are prepared for Term 1 and Terms 2 exams also Board exam Preparation.

Advertisement

Chapter List


Our Educational Apps On Google Play Store