Class 11 6. न्यायपालिका न्यायिक सक्रियता और जनहित याचिका : NCERT Book Solutions
Class 11 chapter 6. न्यायपालिका ncert exercise questions and textual questions with solution for board exams and term 1 and term 2 exams.
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6. न्यायपालिका : न्यायिक सक्रियता और जनहित याचिका Political Science class 11th:Hindi Medium NCERT Book Solutions
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Class 11 6. न्यायपालिका न्यायिक सक्रियता और जनहित याचिका : NCERT Book Solutions
NCERT Books Subjects for class 11th Hindi Medium
6. न्यायपालिका
Class 11 chapter 6. न्यायपालिका ncert exercise questions and textual questions with solution for board exams and term 1 and term 2 exams.
न्यायिक सक्रियता और जनहित याचिका
न्यायिक सक्रियता : जब किसी व्यक्ति को कोई व्यतिगत नुकसान पहुँचाता है तो वह व्यक्ति इंसाफ पाने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है अथवा वह जनहित याचिका दायर कर सकता है | कई बार ऐसा भी होता है कि अदालत बिना किसी मुकदमें के जनता से जुड़े मामलों को अपने हाथ में ले लेता है इसे ही न्यायिक सक्रियता कहते है |
न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन : भारत में न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन जनहित याचिका या समाजिक व्यवहार याचिका है |
जनहित याचिका : जब कही किसी के द्वारा जनहित की हानि हो रही हो तो न्याय पाने के लिए कोई भी व्यक्ति आदालत में जाकर उससे संबंधित विषय पर याचिका दे सकता है इसे ही जनहित याचिका कहते है |
संविधान की दो विधियाँ जिससे सर्वोच्य न्यायालय अधिकारों की रक्षा करता है :
(1) अनेक प्रकार के रिट : जैसे - बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश आदि जारी करके मौलिक अधिकारों को फिर से स्थापित कर सकता है | उच्च न्यायालयों को भी ऐसी रिट जारी करने की शक्ति प्राप्त है |
(2) जनविरोधी कानून को हटाना : किसी जनविरोधी कानून को गैर-संवैधानिक घोषित कर उसे लागू होने से रोक सकता है |
न्यायिक पुनरावलोकन : किसी भी ऐसी जनविरोधी कानून या कानून जो संविधान के अनुरूप नहीं है सर्वोच्य न्यायालय ऐसे कानूनों को गैर-संवैधानिक घोषित कर उसे लागू होने से रोक सकता है ऐसी शक्ति संविधान द्वारा उसे प्राप्त है | इस प्रकार वह किसी भी कानून की संवैधानिकता की जाँच करता है | इसे ही न्यायिक पुनरावलोकन कहा जाता है | इस प्रकार सर्वोच्य न्यायालय सविधान के व्याख्याकार के रूप में अपने को स्थापित करता है |
न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति सर्वोच्य न्यायालय की सबसे महत्वपूर्ण शक्ति है | जिसके द्वारा वह उस कानून को जो मूल अधिकारों के विपरीत होने पर सर्वोच्य न्यायालय किसी भी कानून की निरस्त कर सकता है |
प्रश्न: न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति सर्वोच्य न्यायालय को किस प्रकार अत्यंत शक्तिशाली बना देता है ?
उत्तर:
(i) न्यायपालिका विधायिका द्वारा पारित कानूनों की और संविधान की व्याख्या कर सकती है | और इसके द्वारा न्यायपालिका प्रभावी ढंग से संविधान की रक्षा करता है |
(ii) जनहित याचिकाओं ने नागरिक के अधिकारों की रक्षा करने की न्यायपालिका की शक्ति में बढ़ोतरी की है |
(iii) वह उस कानून को जो मूल अधिकारों के विपरीत हो सर्वोच्य न्यायालय ऐसे किसी भी कानून की निरस्त कर सकता है |
विधायिका और न्यायपालिका के बीच विवाद :
(i) विधायिका का कार्य है कानून बनाना जबकि न्यायपालिका का कार्य है विधायिका द्वारा बनाये गए कानूनों की संवैधानिक जाँच करना और उन्हें लागु करना, ऐसी स्थिति में कई बार विधायिका और न्यायपालिका आमने-सामने आ जाते है |
(ii) भ्रष्टाचार के कई मामलों में न्यायपालिका ने जाँच एजेंसियों को राजनेता और नौकरशाहों के विरुद्ध जाँच करने का निर्देश दिया है | जिससें विधायिका और न्यायपालिका आमने-सामने आ जाते है |
(iii) कई बार विधायिका द्वारा बने कानून संविधान की मूल आत्मा के विरुद्ध होते है जिसे न्यायपालिका निरस्त कर देता है और दोनों टकराव की स्थित में आ जाते है |
(iv) कई बार निजी संपति के अधिकार, मौलिक अधिकारों को सिमित करने, भूमि-सुधार कानून, निवारक नजरबंदी जैसे मुद्दों पर विधायिका और न्यायपालिका के बीच विवाद हो चुके हैं |
(v) संविधान यह व्यवस्था करता है कि न्यायधीशों के आचरण पर संसद में चर्चा नहीं हो सकती परन्तु कई अवसरों पर संसद और राज्यों के विधानसभा में न्यायधिशों आचरण पर अंगुलियाँ उठाई गई | ऐसे ही कई अवसरों पर न्यायपालिका ने भी विधायिका की आलोचना की है |
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2. न्यायिक सक्रियता और जनहित याचिका
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