CBSE NOTES for class 9 th
1. फ़्रांसिसी क्रांति : History class 9 th:Hindi Medium NCERT Book Solutions
NCERT Books Subjects for class 9th Hindi Medium
1. फ़्रांसिसी क्रांति
एस्टेट जेनराल : एस्टेट्स जेनराल एक राजनितिक संस्था थी जिसमें तीनों एस्टेट अपने -अपने प्रतिनिधि भेजते थे | ये प्रतिनिधि नए करों के प्रस्तावों पर मंजूरी देते थे | इस संस्था की बैठक कब बुलाई जाये इसका निर्णय सम्राट ही करता था | इसकी अंतिम बैठक सन 1614 में बुलाई गयी थी |
5 मई 1789 को एस्टेट्स जेनराल की बैठक : फ्रांसिसी सम्राट लूई XVI ने 5 मई 1789 को नए करों के प्रस्ताव के अनुमोदन के लिए एस्टेटस जेनराल की बैठक बुलाई | प्रतिनिधियों की मेजबानी के लिए वर्साय के एक आलिशान भवन को सजाया गया | पहले और दुसरे एस्टेट्स ने इस बैठक में अपने 300-300 प्रतिनिधि भेजे जो आमने-सामने की कतारों में बिठाए गए | तीसरे एस्टेट्स के 600 प्रतिनिधि उनके पीछे खड़े किए गए | तीसरे एस्टेट का प्रतिनिधित्व इसके अपेक्षाकृत समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग कर रहे थे | किसानों, औरतों एवं कारीगरों का सभा में प्रवेश वर्जित था |
तीसरे वर्ग के प्रतिनिधियों की माँग : इस सभा में तीसरे वर्ग के प्रतिनिधियों ने माँग रखी की अबकी बार पूरी सभा द्वारा मतदान कराया जाना चाहिए, जिसमें प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार होगा | जब सम्राट ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया तो तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि विरोध जताते हुए सभा से बाहर चले गए |
तीसरे एस्टेट द्वरा नैशनल असेम्बली की घोषणा : तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि खुद को सम्पूर्ण फ्रांसिसी राष्ट्र का प्रवक्ता मानते थे | 20 जून को ये प्रतिनिधि वर्साय के इंडोर टेनिस कोर्ट में जमा हुए और उन्होंने अपने आप को नैशनल असेंबली घोषित कर दिया और शपथ ली कि जब तक सम्राट की शक्तियों को कम करने वाला संविधान तैयार नहीं किया जायेगा तब तक असेंबली भंग नहीं होगी | उनका नेतृत्व मिराब्यो और आबे सिये ने किया |
आंदोलित फ्रांस : जिस वक्त नैशनल असेम्बली संविधान का प्रारूप तैयार करने में व्यस्त थी, पूरा फ्रांस आंदोलित हो रहा था | कड़ाके की ठंढ के कारण फसल मरी गयी थी और पावरोटी कीमतें आसमान छू रही थी | बेकरी मालिक स्थित का फायदा उठाते हुए जमाखोरी में जुटे थे |
क्रुद्ध भीड़ द्वारा बास्तील पर धावा : फ्रांस में ऐसी स्थिति बन गयी जिसे संभालना अब सम्राट के लिए मुमकिन ही नहीं नामुमकिन था | गुस्साई औरतों ने बेकरी कि दुकानों पर धावा बोल दिया | दूसरी तरफ सम्राट ने सेना को पेरिस में में प्रवेश करने का आदेश दे दिया | इससे क्रुद्ध भीड़ में बास्तील पर धावा बोलकर उसे नेस्ताबुद कर दिया | किसानों ने अन्न के भंडारों को लुट लिया और लगान संबंधित दस्तावेजों को जलाकर राख कर दिया | कुलीन बड़ी संख्या में अपनी जागीर छोड़कर भाग गए, बहुतों ने तो पडोसी देशो में शरण ली |
सम्राट लूई द्वारा नैशनल असेंबली को मान्यता : विद्रोही प्रजा की शक्ति से घबराकर लूई XVI ने अंतत: नैशनल असेंबली को मान्यता दे दी और यह भी मान लिया कि उसकी सत्ता पर अब से संविधान का अंकुश होगा | इसप्रकार 4 अगस्त, 1789 की रात को असेंबली ने करों, कर्तव्यों और बंधनों वाली सामंती व्यवस्था के उन्मुलन का आदेश पारित किया | सभी धार्मिक करों को समाप्त कर दिया गया | पादरियों को उनके विशेषाधिकार को छोड़ना पड़ा और चर्च की स्वामित्व वाली भूमि जब्त कर ली गयी |
फ्रांस में संवैधानिक राजतन्त्र की नींव : 1791 में नैशनल असेम्बली द्वारा संविधान का प्रारूप पूरा कर लिए जाने के बाद सत्ता एक व्यक्ति के हाथ में केंद्रीकृत होने के बजाय अब इन शक्तियों को विभिन्न विभिन्न संस्थाओं जैसे -
(i) विधायिका (ii) कार्यपालिका और (iii) न्यायपालिका - में विभाजित एवं हस्तांतरित कर दिया गया | इस प्रकार फ़्रांस में संवैधानिक राजतन्त्र की नींव पड़ी | इस नए संविधान का मुख्य उदेश्य था सम्राट की शक्तियों कि सिमित करना | सन 1791 के संविधान ने कानून बनाने का अधिकार नैशनल असेंबली को सौप दिया | यह नैशनल असेंबली अप्रत्यक्ष रूप से चुनी जाती थी |
सक्रीय नागरिक : नए संविधान के अनुसार फ्रांस की 2.8 करोड़ की जनसंख्या में लगभग 40 लाख लोगों को मताधिकार प्राप्त था जिन्हें सक्रीय नागरिक कहा जाता था |
सक्रीय नागरिक का दर्जा उन्ही लोगों को प्राप्त था जो कम-से-कम तीन दिन की मजदूरी के बराबर कर चुकाते थे | निर्वाचक कि योग्यता और असेंबली का सदस्य होने के लिए करदाताओं की उच्चतम श्रेणी में होना जरुरी था |
निष्क्रिय नागरिक : लगभग 30 लाख पुरुषों, महिलाओं, बच्चों और 25 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों को मताधिकार प्राप्त नहीं था, इन्हें ही निष्क्रिय नागरिक कहा जाता था |
विधायिका द्वारा कार्यपालिका पर नियंत्रण : अब नया संविधान बन जाने के बाद विधायिका जिसे नैशनल असेंबली कहा जाता था और इसके 745 सदस्य थे | फ्रांस में कार्यपालिका जिसमें स्वयं सम्राट और उनके मंत्रीगण शामिल थे को नैशनल असेंबली नियंत्रित करती थी | सक्रीय नागरिक जिन्हें मताधिकार प्राप्त था वे निर्वाचक समूह का चुनाव करते थे और यही निर्वाचक समूह नैशनल असेंबली के सदस्यों का चुनाव करती थी |
न्यायपालिका का चुनाव : न्यायपालिका का चुनाव भी यही सक्रीय नागरिक वोट के द्वारा करते थे |
पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणा पत्र : नए संविधान की शुरुआत इसी घोषणा पत्र से हुआ था | राज्य का यह कर्तव्य माना गया कि वह प्रत्येक नागरिक के नैसर्गिक (जन्मजात) अधिकारों की रक्षा करे | इन अधिकारों में शामिल था जीवन के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और क़ानूनी बराबरी के अधिकार को 'नैसर्गिक एवं अहरणीय' अधिकार के रूप में स्थापित किया गया | ये अधिकार प्रत्येक नागरिक को जन्मना प्राप्त थे और इसे छीना नहीं जा सकता था |
मर्सिलेस : यह एक देशभक्ति गाना था जिसे मर्सिलेस के स्वयंसेवियों ने पेरिस की ओर कूच करते हुए गया था | इसलिए इसका नाम मार्सिले हो गया और अब यह फ्रांस का राष्ट्रगान है |
क्रांति की आवश्यकता : नैशनल असेम्बली द्वारा बनाया गया नया संविधान को हम देखे तो पाते हैं कि 1791 के संविधान में सिर्फ अमीरों को ही राजनितिक अधिकार प्राप्त हुए थे | जिससे देश के आबादी का बड़ा हिस्सा ठगा हुआ महसूस कर रहा था और वे इस क्रांति के सिलसिले को आगे बढ़ाना चाहते थे |
जैकोबिन क्लब : जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यतः समाज के कम समृद्ध हिस्से से आते थे। इनमें छोटे दुकानदार और कारीगर--जैसे जूता बनाने वाले, पेस्ट्री बनाने वाले, घड़ीसाश, छपाई करने वाले और नौकर व दिहाड़ी मजदुर शामिल थे। उनका नेता मैक्समिलियन रोबेस्प्येर था।
जैकोबिन क्लब के सदस्यों का पहनावा : जैकोबिनों के एक बड़े वर्ग ने गोदी कामगारों की तरह धारीदार लंबी पतलून पहनने का निर्णय किया। ऐसा उन्होंने समाज के फैशनपरस्त वर्ग, खासतौर से घुटने तक पहने जाने वाले ब्रीचेस पहनने वाले वुफलीनों से खुद को अलग करने के लिए किया। यह ब्रीचेस पहनने वाले कुलीनों की सत्ता समाप्ति के एलान का उनका तरीका था। यही कारण है कि जैकोबिनों को सौ कुलात के नाम से जाना गया | सौं कुलॉत पुरुष लाल रंग की टोपी भी पहनते थे जो स्वतंत्रता का प्रतीक थी। लेकिन महिलाओं को ऐसा करने की अनुमति नहीं थी।
सौ कुलात शब्द का अर्थ: सौ कुलात का शाब्दिक अर्थ है - बिना घुटने वाले |
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